नाट्यश्रेष्ठ कलाकारों ने अपनी लोक संस्कृति के ताने बाने में बुने नाटक देऊ खेल का किया सफल मंचन

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सुरभि न्यूज
कुल्लू

ज़िला कुल्लू के उभरते नाटक ग्रुप नाट्यश्रेष्ठ कलाकारों ने अपनी लोक संस्कृति के ताने बाने में बुने एक नाटक देऊ खेल का सफल मंचन किया। नाटक की प्रस्तुति जमोट गांव के एक खुले प्रांगण में की गई और गांव के लोग जिनमें युवक मण्डल और महिला मण्डल सदस्य दर्शक के रूप में उपस्थित थे। दर्शकों ने नाटक मुक्त कण्ठ से सराहना की।

रेवत राम विक्की द्वारा लिखित व निर्देशित इस नाटक की कहानी जहां देव संस्कृति का सुन्दर दर्शन करवाती है वहीं हमारे समाज में प्रचलित जाति पाति की कुरीति पर भी कुठारघात करती है। नाटक में एक लड़का जो शहर में पढता है और छुट्टियों में गांव आया है तो वह गांव के बच्चों को देखता है कि आपस में देवता देवता खेल रहे होते हैं। हालांकि वह मोबाइल फोन के कल्चर का होता है पर उसे उनके साथ इस खेल में मज़ा आता है। फिर वे मिल कर एक देवता को छोटा से रथ बनाते हैं और आपस में तय करते हैं कि कल हम इस रथ को सजाने के लिए कुछ कपड़े जैसे चुनरियां आदि अपने अपने घर से लाएंगे।

लेकिन शहर से आया हुआ बच्चा अपने घर से एक ऐसी चादर लाता है जो उसकी मां ने सचमुच ही देवता को देने के लिए रखी होती है। वह बच्चा सवर्ण जात का होता है जबकि गांव के बच्चे अनुसूचित जाति के होते हैं। नाटक की कहानी में जात पात का भी काफी असर दिखता है। बहरहाल जब बच्चे खेल खेल में देवता को सजा कर नाच रहे होते हैं तो देवता के रथ से सचमुच में कला शक्ति चढती़ जाति है और एक बच्चे को देव खेल चढती है और वह शहर के लड़के को कहता है मैं तुझ से बहुत खुष हूं तूने मुझे चादर चढाई अब एक वचन दे कि तू हर साल आएगा मुझसे मिलने। लड़का शहर जाकर भूल जाता है।

पर समय के साथ वह वह जब बड़ा होने लगता है तो काफी परेषान रहने लगता है। उसे सपने में बार बार कोई गांव बुला रहा होता है। जब सचमुच गांव आता है तो देवता का गूर उसे गले लगाकर कहता है कि मैं कब से तेरा इंतज़ार कर रहा था। जा अब तुझे कोई परेषानी नहीं आएगी। नाटक में तेजस्वी, यक्षिता, खुशी, अनुराग, अभिमन्यु, प्रणव, नाइरा, सारिका, तृशा, विनय और पायल आदि कलाकारों ने बहतरीन अभिनय किया।

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