सुरभि न्यूज
धर्मचंद यादव, कुल्लू: 13 अक्तूबर
ऋषि मुनियों की तपोस्थली देव घाटी कुल्लू जहां श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है वहीं प्रकृति की नैसर्गिक छटा से महकती पूरी कुल्लू घाटी ही नहीं बल्कि पूरा हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुठा खजाना अपने में समेटे हुए है। नैसर्गिक छठा से महकते हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पहाड़ों के आगोष में बसी कुल्लू घाटी तो सदैव ही श्रद्धालुओं, सैलानियों व जिज्ञासुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र रही है।
घाटी को चारों ओर से घेरे ऊंचे-2 पहाड़ किसी मौन प्रहरी के समान लगते हैं। कल-2 का नाद करती बहती ब्यास व पार्वती, फलों के बागीचे, देवदार के सायं-2 करते घने जंगल, ठंडे बर्फानी जल के साथ-2 गर्म जल के चश्में प्राचीन सभ्यता संस्कृति के सैंकड़ों मन्दिर व जनमानस, यहां के मेले और घाटी के भोले-भाले ग्रामीण सदा ही सभी के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। पंच्छियों का कर्णप्रिय क्लरव और झरनों का मनोहारी संगीत मन को आंदोलित करता है।
जहां प्रकृति इतनी उदार हो वहां जनमानस भी भोला, निश्छल, हंसमुख व उदार होता है। उसी वजह से दवभूमि के नाम से कुल्लू घाटी विख्यात है। यहां का जनमानस प्रत्यक्ष रूप से देव संस्कृति से जुड़ा है। देवता इनके लिए किसी दूसरे लोक के निवासी नहीं होते हैं। बल्कि गांव में इनके साथ रहने वाले इनके सुख-दुःख का साथी होता है। वह देवता जो रथ के रूप में साकार हो उठता है। देवता कुल्लू के लोगों का गौरव व आस्था का केन्द्र है। त्यौंहारों व मेलों में व विषेष कार्यक्रमों में देवता की उपस्थिति अनिवार्य होती है। कुल्लू घाटी के हर गांव में देवता का रथ व मन्दिर स्थापित है। वैसे तो हर देवता का अलग मेला होता है। जिसमें आस-पास के गांव के देवता व लोग सामिल होते हैं।
मगर अक्तूबर माह आते ही सम्पूर्ण कुल्लू घाटी का कोना-कोना, ऊंचे-2 पर्वत शिखर, रोहतांग से निकली ब्यास की लहरें और यहां का सम्पूर्ण जनमानस मस्ती से भरकर नृत्य करने लगता है। जिस तरफ भी देखो पालकी में सज-धज कर देवी-देवता का पारम्परिक परिधानों से सुसज्जित पहाड़ का जनमानस देवता के साथ बाजे-गाजे के साथ नाचते गाते नजर आते है। भेखली, बिजलीमहादेव, पीज घाटी ”दरपौइण“ चारों तरफ घाटी का कोना-कोना ढोल नगाड़ों की मधुर आवाजों से गुंजायमान हो उठता हैं।
हर वर्ष अक्तूबर माह में कुल्लू घाटी के ढालपूर मैदान में सात दिन तक चलने वाला दशहरा पूरी तरह पारम्परिक व सांस्कृतिक ढ़ंग से मनाया जाता हैं। कुल्लू के दशहरे को जिससे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली है वह है यहां का ”लोक नृत्या“ यहां के जनमानस की माटी के कण-2 में समाया है।