ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का जायजा लेने तीर्थन घाटी शाईरोपा पहुंची विश्व बैंक की टीम

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सुरभि न्यूज़

परस राम भारती, तीर्थन घाटी गुशैनी बंजार

हिमाचल प्रदेश जिला कुल्लु में पश्चमी हिमालय के सुदूर क्षेत्र बंजार की तीर्थन और सैंज घाटी में स्थित विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को वर्ष 2015 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया। यह नेशनल पार्क भारत के बहुत ही खूबसूरत नेशनल पार्कों में से एक है। इस पार्क क्षेत्र के इकोजॉन में रहने वाले स्थानीय हितधारकों के जीवन स्तर और यहाँ के पर्यावरण में तब से लेकर अब तक क्या बदलाव हुए, इसका जायजा लेने के लिए विश्व बैंक की टीम तीर्थन घाटी के शाईरोपा पहुंची।

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के वन मण्डल अधिकारी सचिन शर्मा की अध्यक्षता में बुधवार को शाईरोपा कॉम्प्लेक्स में स्थानीय हितधारकों के साथ एक बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में विश्व बैंक के पदाधिकारी डॉक्टर मधु वर्मा, डॉ. कनिका चंदेल, डॉ. नवीन वाली, डॉ. इरिना दास गुप्ता और डॉ. बसुधा मल्होत्रा, एसीएफ हंस राज सहित अन्य गणमान्य लोग विशेष रूप से उपस्थित रहे।

बैठक में पार्क क्षेत्र की तीनों रेंज के कुछ हितधारकों, पर्यटन कारोबारिओं, स्वयं सहयता समूह की सदस्यों, महिला मंडल, नेचर गाइड और कुछ गांव विकास समिति के पदाधिकारिओं ने हिस्सा लिया।

इस टीम द्वारा बैठक में उपस्थित लोगों को परिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान पीईएस (Payment for Ecosystem Services) के तहत ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के बारे में फीडबैक ली गई। पार्क क्षेत्र में हुए पर्यावरण परिवर्तन, मानव दखल, प्रदूषण, आगजनी, समुदाय की सहभागिता, आजीविका, पर्यटन, पार्क के प्रबंधन, वन अधिकारों, संरक्षण एवं संबर्धन और चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा परिचर्चा की गई।

गौरतलव है कि ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का क्षेत्रफल करीब 765 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां पर अद्वितीय प्राकृतिक सौन्दर्य और जैविक विविधिता का अनुपम खजाना भरा पड़ा है। इस नेशनल पार्क का महत्व यहां पाई जाने वाली दुर्लभतम जैविक विविधता से ही है। वन्य जीव हो या परिन्दा, चिता, भालू, घोरल, ककड़, जेजू राणा, मोनाल सरीखे कई परिन्दे व जीवजन्तु और वन वनस्पति औषधीय जड़ी बूटियां यहां मौजूद है। इस पार्क की विशेषता यह भी है कि यहां पर वन्य जीवों व परिन्दों की वे प्रजातियां आज भी पाई जाती है जो समूचे विश्व में दुर्लभ होने के कगार पर है। बात चाहे वन्य प्राणियों की हो चाहे परिन्दों की हो या औषधिय जड़ी बूटियों की हो, यह पार्क क्षेत्र हर प्रकार के अनुसंधान कर्ता, प्रकृति प्रेमियो, पर्यटकों और ट्रैकरों को लुभा रहा है।

इस टीम की सदस्य भारतीय वन एवं अनुसन्धान केन्द्र देहरादून की शोध्यार्थी इरिना दास गुप्ता ने “स्पाइडर्स ऑफ द वर्ल्ड” पर इसी पार्क क्षेत्र में शोध करके पीएचडी की डिग्री हासिल की है।

विश्व बैंक की पदाधिकारी डॉ. मधु वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि कि बहुत लम्बी प्रक्रिया के बाद इस नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिला है। इन्होने बताया कि इस पार्क का मूल्यांकन किया जा रहा है जिसकी रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इन्होंने उपस्थित लोगों से पार्क क्षेत्र में बढ़ते पर्यटन, ठोस कचरा प्रबंधन, पौधारोपण, शिक्षण प्रशिक्षण और पार्क के संरक्षण एवं संवर्धन में स्थानीय समुदाय की सहभागिता आदि विषयों पर भी चर्चा परिचर्चा की है।

बैठक में लोगों ने विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की जैविक विविधता पर मंडरा रहे कुछ खतरों से भी आगाह करवाया है। पार्क क्षेत्र में बढ़ता भूमि कटाव, प्रदूषण, जंगल की आग, अवैध शिकार, अवैध डंपिंग और जड़ी बूटियों का दोहन तथा गैर जिमेदारना पर्यटन से इस धरोहर के लिए खतरा पैदा हो गया है। सदस्यों ने चेताया है कि समय रहते हुए इन खतरों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के वन मण्डल अधिकारी सचिन शर्मा ने बताया कि तीर्थन वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के लिए मैनेजमेंट प्लान तैयार किया जा रहा है। इन्होंने बताया कि पार्क क्षेत्र की सभी नेचर ट्रेल में पर्यटन की वजह से जो कूड़ा कचरा फैल रहा है उसके निष्पादन की व्यवस्था की जाएगी।

बैठक में तीर्थन संरक्षण एवं पर्यटन विकास एसोसिएशन के प्रधान वरुण भारती, हिमालयन इको टूरिज्म से हेमा मार्शल, एचईटी. कोऑपरेटिव सोसाइटी के प्रधान केशव ठाकुर, नेचर गाइड पवन ठाकुर, टीसीटीडीए के उप प्रधान अमन नेगी, बीटीसीए के सचिव लालचंद राठौर, गांव विकास कमेटी शांगड़ के प्रधान प्रवीण ठाकुर, ग्राम ग्राम पंचायत तुंग के प्रधान घनश्याम ठाकुर और ग्राम पंचायत कंडीधार के उप प्रधान मोहिंदर सिंह, नेचर गाइड लोभू राम, ग्राम पंचायत नोहन्डा के पूर्व प्रधान स्वर्ण सिंह ठाकुर, पर्यटन कारोबारी पंकी सूद आदि ने इस चर्चा परीचर्चा में मुख्य रूप से हिस्सा लिया।

लोगों का कहना है कि स्थानीय हितधारक ही सदियों से इस पार्क क्षेत्र के जंगलों और जैव विविधता की रक्षा करते आ रहे है, जिसके बदले उन्हें रोजगार, प्रशिक्षण, सम्मान और मुआवजा मिलना चाहिए था, लेकिन धरातल स्तर पर ऐसा कुछ नहीं दिख रहा। नेशनल पार्क बनने के बाद इस क्षेत्र से उनके हक़ अधिकार छीन लिए गए है।

युवा चाहते हैं कि पीईएस मॉडल के तहत पार्क क्षेत्र से सटे गावों के लिए विश्व बैंक से सामुदायिक लाभ वाली योजनाएं लाई जाए। जिसके अंतर्गत गांव के बेरोजगार युवाओं को पारिस्थितिक सेवाओं में भागीदारी देकर उन्हें रोजगार दिया जाए। जिसमें ईको टुरिज्म गाइड, हस्तशिल्प, बायोडायवर्सिटी बाचर, पर्यटन प्रवंधन, होमस्टे संचालन, कूकिंग, बर्ड बचिंग, नेचर गाइड, शहद, प्राकृतिक खेती, अपशिष्ट प्रबंधन जैसे कामों के लिए उन्हें प्रशिक्षण, ऋण और मासिक भुगतान की योजना चलाई जाए। इससे हम जंगल की रक्षा भी करेंगे और हमारी आजीविका भी सुधरेगी।

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