अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला में परंपरागत रूप से 17वीं शताब्दी से आयोजित की जा रही है अश्व प्रदर्शनी 

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सुरभि न्यूज़
प्रताप अरनोट, शिमला 
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला के रामपुर बुशहर में अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला परंपरागत रूप से 17वीं शताब्दी से हर साल आयोजित किया जाता रहा है। यह मेला बुशहर के तत्कालीन राजा और तिब्बती शासकों के बीच व्यापार संधि के बाद आयोजित किया गया था। इस मेले में न केवल वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है, बल्कि पशुधन का व्यापार भी होता है। लवी शब्द लोवी से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है ऊन काटना। ऊन और ऊनी परिधानों का व्यापार इस मेले का अभिन्न अंग था।
तिब्बत पठार से उत्पन्न चामुर्थी नस्ल के घोड़ों को ठंडे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। इसका मुख्य कारण उनके मजबूत पैर, कम हवा में भी ऊँचाई पर आसानी से चलने की क्षमता और अत्यधिक ठंडी परिस्थितियों में टिके रहने की क्षमता है।
इसके मुख्य प्रजनन क्षेत्र लाहौल स्पीति में पिन घाटी और हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिला में भाभा घाटी हैं। हर साल लवी मेले से पहले, हिमाचल प्रदेश पशुपालन विभाग जिला शिमला प्रशासन के साथ मिलकर इन घोड़ों के व्यापार को सुविधाजनक बनाने और बढ़ावा देने के लिए रामपुर बुशहर में अश्व मंडी/अश्व प्रदर्शनी का आयोजन करता है।
खरीददार मुख्य रूप से उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिला के स्थानीय लोगों के साथ-साथ अन्य जगहों से आते हैं। इस वर्ष प्रदर्शनी में पड़ोसी राज्यों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित करने का निर्णय जिला प्रशासन ने लिया है।
इस वर्ष रामपुर बुशहर में 1 नवंबर से 3 नवंबर, 2025 तक अश्व मंडी/हॉर्स शो का आयोजन किया जा रहा है। घोड़ों का पंजीकरण 01 नवंबर को किया जाएगा और 02 नवंबर 2025 को अश्वपालकों के लिए एक जागरूकता शिविर और किसान गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा।
समापन दिवस समारोह 03 नवंबर को 400 मीटर और 800 मीटर घुड़दौड़ व गुब्बारा फोड़ प्रतियोगिता के साथ पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया जाएगा। उसी दिन मुख्य अतिथि द्वारा सर्वश्रेष्ठ घोड़ों का चयन और पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
यह हॉर्स शो इन मूल्यवान अश्व प्रजातियों के संरक्षण और व्यापार को बढ़ावा देकर स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड जैसे आसपास के राज्यों से खरीदारों को आकर्षित करता है।

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