हिंदी दिवस पर विशेष
हिन्दी का दर्द-चल बहना छोड़ यह कहानी
चल बहना छोड़ यह देश
जहां माानव ने बदला है अपना भेष
दीए में न जलेगा कोई बाती, न डालेगा तेल
जहां उतर दक्षिण का होगा न मेल
अब तो दरिया में बह चुका बहुत पानी
चल बहना छोड़ यह कहानी
सात दशकों से मैं शैशव में ही रही
आ गया बुढापा पर न आई जवानी
केवल जन्मदिन पर मेरे दिए पर डाला जाता
न जाने वह तेल होता है या होता है पानी
जिसने लौटाई न मेरी जवानी
चल बहना छोड़ यह कहानी
सरल थी तरल थी नहीं थी पराए देश से आई
अपने ही भारत मां की मैं थी जाई
फिर भी मुझे अपनाने में क्यों हुई रूसवाई
विदेश से आकर मेरी सोतन ने अपनी धाक जमाई
अपने ही घर से मैं होकर रह गई पराई
अब तो कथा हो गई पुरानी
चल बहना छोड़ यह कहानी
मेरा अस्तीत्व हमेशा रहे थी एक ही कामना
पर मेरे बच्चों में जगी न यह भावना
दुख दर्द से मैं कितना कहराई
मेंरी पीड़ा किसी के समझ में न आई
दुनिया मेरे लिए हुई न सानी
चल बहना छोड़ यह कहानी
लेखिका-विद्या शर्मा गाव डोभी डाकघर पुईद जिला कुुल्लू
सेवा निवृत जिला भाषा अधिकारी कुल्लू