सुरभि न्यूज़
खुशी राम ठाकुर, बरोट
जिला मंडी के चौहार घाटी तथा जिला कांगड़ा के छोटाभंगाल में कुछ गाँव ऐसे भी हैं जहां बीडी , सिगरेट, तंबाकू व चमड़े की वस्तुओं पर पूरी तरह प्रतिबंध है। अगर कोई ब्यक्ति भूल कर ऐसी वस्तुएँ इन गांव में लेकर चला जाता है और गॉंव वाले उसे इन वस्तुयों सहित पकड़ लेते है तो उसे निर्धारित जुर्माना भरना पड़ता है। चौहारघाटी के हुरंग, ख्बाण, पंजौड़, व रूलिंग तथा छोटाभंगाल के जुधार, छेरना तथा अन्दरली मलाह ऐसे गाँव है जहां पर आज भी देवाज्ञा लागू है। इन गांव में देवाज्ञा है कि कोइ भी गांववासी या बाहर से आनेवाला ब्यक्ति बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू व चमड़े की क़ोई भी वस्तु गाँवों में नहीं ले जा सकता है। लोगों का कहना है कि अगर क़ोई ब्यक्ति देवी–देवताओं की आज्ञा की अवेहलना करता है तो सभी गांव वासियोंको को प्राकृतिक आपदा का दंश झेलना पड़ता है तथा उल्लंघन करने वाले ब्यक्ति पर देवी–देवताओं की आज्ञानुसार जुर्माना भरना पड़ता है। यह बात आपको बेशक कुछ अटपटी लगे लेकिन यह सही है कि इन दोनों क्षेत्रों में देवी-देवताओं के आदेश ही सर्वोपरी माने जाते हैं। दोनों घाटियों के इन सभी गाँवों में देवी-देवताओं की आज्ञा के चलते किसी को भी गांव अंदर बीडी, सिगरेट, तंबाकू व चमड़े का कोई भी सामान ले जाने की अनुमति नहीं है। यह प्रथा अब से नहीं है बल्कि सदियों से चली आ रहीं है। गांववासीयों या बाहर से आये लोगों को सभी वस्तुएं गांव की सरहद के बाहर छुपाकर रखनी पड़ती है। गॉंववासियों की जानकारी के अनुसार जब भी इस आज्ञा की अवेहलना हुई है गांववासियों को किसी न किसी प्रकार का प्राकृतिक दंश झेलना पड़ा है। अगर कोई इन गाँवों में मनाही के बावजूद भी ऐसी वस्तुएँ ले जाता है तो वहां के मंदिर के गुर व पुजारी को इसका तुरंत समाधान करना पड़ता है। इन गाँवों के सुंदर सिंह, हरिराम, श्याम सिंह व वजिन्द्र सिंह बताते हैं कि जब भी इन गाँवों में कोई ऐसी वस्तुएँ लेकर प्रवेश करता है तो यहाँ के मंदिरों के गुर व पुजारी को मालूम पड़ जाता है। उसके बाद अवहेलना करने वाले ब्यक्ति को पकड़ कर मन्दिर में लाया जाता है। मंदिर में पुजारी या गुर देवाज्ञा के अनुसार जो जुर्माना बताता है वह भरना पड़ता है तथा साथ मे माफी भी मांगनी पड़ती है। इनका कहना है कि ऐसा कई बार हो चुका है कई लोगों ने जुर्माना भरने के साथ मंदिर में माफी मांगी है। दोनों घाटियों के इन गाँवों में सदियों से चली आ रही यह प्रथा आज भी बदस्तूर जारी ही है। गाँवों में देवी–देवताओं के विराज़मान होने के चलते इन गाँवों के लोग देवी-देवताओं के आदेशों को देवाज्ञा मानते हैं।