रंगमंच : तीसरी संध्या : नाट्यांष सोसायटी उदयपुर राजस्थान के कलाकारों ने भगवद्जुक्कम नाटक से दर्शकों को किया लोटपोट

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सुरभि न्यूज़ ब्यूरो

कुल्लू, 4  मार्च

स्थानीय संस्था ऐक्टिव मोनाल कल्चरल ऐसोसिएशन द्वारा उत्तर क्षे़त्र सांस्कृतिक केन्द्र पटियाला के सहयोग से भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश संयुक्त तत्वावधान में कला केन्द्र कुल्लू में आयोजित किए जा रहे नौ दिवसीय ‘कुल्लू राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव’ की तीसरी संध्या नाट्यांष सोसायटी उदयपुर राजस्थान के कलाकारों ने बोधायन कृत नाटक ‘भगवद्जुक्कम’ का रेखा सिसोदिया के निर्देशन में मंचन कर दर्शकों को कभी गुदगुदाया तो कभी ठहाके
लगाने पर मजबूर कर दिया।

नाटक में एक सन्यासी योगी अपने शिष्य को आत्मा और शरीर पृथक हैं की शिक्षा देता है। शिष्य पूर्ण रूप से अभी सन्यास धारण करने योग्या नहीं होता। इसी बीच एक गणिका बाग में उसे दिखती है और चेला उसे देख कर मोहित होता है। वह अपने प्रेमी की प्रतीक्षा कर रही होती है।

उस समय यमदूत रूपी सर्प उस गणिका को डस लेता है और यमदूत उसकी आत्मा को लेकर चला जाता है। चेला इसी बीच गुरू को मदद के लिए कहता है। जब गुरू कहता है कि इसके कर्म पूरे हो गए हैं तो चेला गुरू को कहता है कि आप तो इसकी मदद ही नहीं करना चाहते और भी गुरू को अनाप शनाप कहता है, यह तक भी कहता है कि आपके पास तो योग शक्ति ही नहीं है।

इस पर गुरू उसे योग शक्ति दिखाने के लिए अपना शरीर छोड़ गणिका के शरीर में प्रवेश करता है। इसी बीच यमदूत गणिका की आत्मा को भी वापिस लाता है क्योंकि वह उसे गलती से गया था। उठाना किसी और को था और उठा ली गई वह गणिका। अब जब वह वापिस आता है देखता है कि गणिका के शरीर में तो सन्यासी की आत्मा घुसी है। अब यमदूत भी शरारत करता है वह गणिका की आत्मा को सन्यासी के शरीर में घुसा देता है। अब हास्य उत्पन्न होता है।

गणिका का शरीर सन्यासी जैसा व्यवहार करने लगता है तो सन्यासी का शरीर गणिका जैसा। अन्ततः यमदूत सन्यासी
से निवेदन करता है कि अपना शरीर वापिस ले ले। फिर सब ठीक हो जाता है। नाटक में अमित, अगस्त्य, उर्वशी, रिया, कृष्णा, भुवन, मुकुल, तंजीम, अशरद, हर्ष, हर्शिता, यश, कुशाग्र, राजन और दिव्यांश कलाकारों ने अपनी अपनी भूमिकाओं को बेहतर प्रस्तुत किया।

जबकि प्रकाश संयोजन रिजवान मंसूरी का रहा और बैक स्टेज पूनम तथा शहजोर अली ने कार्य सम्पन्न किया। इस
संध्या में बतौर मुख्य अतिथि डाॅ दयानन्द गौतम रहे।

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