चौहार घाटी के बरोट में निजी कम्पनी द्वारा लगाया गया ट्रेक्टर बिक्री के लिए स्टाल

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सुरभि न्यूज़

खुशी राम ठाकुर, Kbhi

निचले क्षेत्रों की तर्ज पर दुर्गम क्षेत्रों के किसान भी आजकल खेतीबाड़ी संबंधी कार्य करने के लिए ट्रेक्टरों पर निर्भर हो रहे हैं। छोटाभंगाल घाटी की सात तथा चौहार घाटी की चौदह पंचायतों के लगभग 153 गाँवों के किसान बैलों से हल जोताई न कर अब ज्यादातर ट्रेक्टरों से ही किसान अपने खेतों को जोत रहे हैं।

गौरतलव है कि इन दोनों क्षेत्र के हर किसानों के पास एक-एक जौड़ी बैल की हुआ करती थी जिससे किसान अपनी खेतीबाडी का सारा कार्य किया करते थे। मगर आधुनिकता के इस दौर में बैलों की जगह अब ट्रेक्टरों ने ले ली है, जिस कारण बैल अब गुज़रे ज़माने की बात हो गई है।

दोनों क्षेत्र के वजिन्द्र सिंह, दान सिंह, प्रेम सिंह, डागी राम, राज कुमार, रागी राम, भागमल, जसवंत सिंह तथा दुर्गादास किसानों का कहना है कि दुर्गम क्षेत्र में ट्रेक्टरों की पहुँचने की यह वजह है कि किसानों ने मवेशियों सहित बैलों की जौड़ी को पालना लगभग बंद कर दिया है जो कि खेतीबाड़ी कार्य हेतू पूरी तरह घातक सिद्ध हो सकता है।

उनका कहना है कि बैलों के पालने से इक ओर खेतों में डालने के लिए पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद हो जाती थी वहीँ ट्रेक्टरों की अपेक्षा बैलों द्वारा की गई जाने वाली हल जोताई गहरी व सही ढंग से होती थी। इसके बावजूद भी किसानों ने अपनी नासमझी का परिचय देते हुए बैलों की जगह तेल पीने वाले बैल रूपी ट्रेक्टरों को स्थान दे दिया है।

इन किसानों का कहना है कि बेशक ट्रेक्टरों द्वारा की जाने वाली हल जोताई बहुत ही जल्द हो जाती है मगर ट्रेक्टरों द्वारा हल जोताई के समय ख़तरा भी मंडरता रहता है। जानकारी के अनुसार ट्रेक्टरों द्वारा की जाने वाली हल जोताई के दौरान कई किसान इसकी चपेट में आने से पूरी तरह घायल हो चुके हैं, जबकि बैलों द्वारा की जाने वाली हल जोताई बेहद आराम दायक सिद्ध होती है।

उनका कहना है कि यहाँ पर खेतों की टेलाबांड न होने के चलते इन दोनों दुर्गम घाटियों में बैलों से हल जोताई करना आसान है मगर फिर भी आधुनिक खेती को देखते हुए किसानों की हौड़ अब ट्रेक्टरों को खरीदने में लगी हुई है। छोटाभंगाल घाटी तथा चौहार घाटी में गत तीन चार वर्षों से निजी कंपनियों द्वारा ट्रेक्टरों की बिक्री के लिए जगह – जगह स्टाल लगते आ रहे हैं। जिस कारण दोनों घाटियों के गांवों में किसानों ने 70 से 90 प्रतिशत ट्रेक्टरों की खरीदारी कर रखी है। इन लोगों सहित घाटियों के बुद्धिजीवियों ने किसानों को सुझाव दिए हैं कि हल जोताई के लिए ट्रेक्टरों के वजाय मात्र बैलों को ही प्राथमिकता दी जाए।

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