पर्यावरण परिवर्तन से हिमालय का अस्त्तित्व खतरे में, संरक्षण के लिए सभी को आना होगा आगे

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सुरभि न्यूज़ ब्युरो

कुल्लू, 26 जून

हिमालय बंजर होने को है। भयंकर आग ने जंगलों, वन पंछियों, जीव वनस्पतियों, प्राकृतिक रहवासों को भस्म कर दिया है। यह आग कोई अपने आप नहीं लगी थी। लोगों ने लगाई थी। लोग कौन होंगे, वही जिनकी भीड़ ने माउंट एवरेस्ट तक की बर्फ छीन ली है। नदियों का सीना चीर दिया है।जिनकी हवस ने खड़े पेड़ों को कंक्रीट के जंगलों में तब्दील कर दिया है। वे जो हिमालय में तीर्थ यात्रा और टूरिज्म के नाम पर भरी भरकम गाड़ियों के साथ लगातार आते जा रहे हैं। यह मानसिकता पूरे देश को आग के गोले में तब्दील कर रही है।
मनुष्य की औकात नहीं कि वह एक कठफोड़वे या एक गिलहरी तक के बराबर वन बना सके। लेकिन पौधारोपण के नाम पर करोड़ों का खेल प्रकृति के साथ मजाक हो रहा है।
इस बुरे दौर में देश और दुनिया में बहुत छोटे छोटे प्रयास प्रकृति को बचाने, उसे समृद्ध बनाने के हो रहे हैं। ये कुछ ही पागल हैं जिन्होंने जहर मुक्त धरती, खाद्यान्न, हरियाली से भरी दुनिया की कल्पना को जीना चाहा है।

हिमालय के ऊपर इस देश के करीब एक अरब लोग और दुनिया के करीब चार अरब लोग निर्भर हैं। हिमालय में जो अति निर्माण, खनन, गाड़ियों, लोगों की भीड़ बढ़ रही, सड़कों, रेल समेत हैलीकॉप्टर की आवाजाही बढ़ रही है, उसके कारण इसका पूरा प्राकृतिक स्वरूप प्रभावित हो रहा है। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है।

आज उन जगहों पर भी बरसात नहीं हो रही, जहां जाड़ों में खूब हिमपात होता था और बरसात से पूर्व हिमालय का अपना मानसून बरस जाता था।

कोई साथी लिखते हैं कि धरती के भीतर 3 मीटर तक गर्मी हो चुकी है। यानि ऊपरी उपजाऊ चार से छह सेंटीमीटर की परत अब अपनी उत्पादकता खो चुकी है।

पता नहीं कितने साल पुराना पानी ट्यूबवेल से निकाल कर लोग पी रहे हैं। जिसे प्रकृति ने अपने संतुलन के लिए रखा था। उसके बाद धरती, पहाड़ों के ऊसर, रोखड होने का भी दौर शुरू हो रहा है।

सरकार और व्यवस्था लगातार अपनी नीतियों को लागू करके इन तथ्यों की उपेक्षा कर रही है। जिनकी आवाजें सरकार को सुननी चाहिए थी, वे सरकार की हां में हां मिला रहे हैं, जो लोग आवाज के बिना हैं, उनके लिए यहां कोई स्थान नहीं है।
जब आप यह सब देखते हैं तो आपको झुरझुरी आ जानी चाहिए, आपका दिल घबराहट से कई मर्तवा अधिक धड़क जाना चाहिए और आपके सामने अगली मानव पीढ़ी का भविष्य दिखना चाहिए, जो आज बासी पानी प्लास्टिक की बोतल से खरीदकर पी रहा और कल उसे ऑक्सीजन भी खरीदकर ही लेनी है। उसका खाना, उसका जीना सब कुछ बाजार पर निर्भर रहना है।

आप चिंता बहुत करते हैं, पर खुद कभी ऐसे लोगों की हिम्मत नहीं बढ़ाते जो इसको रोकने के लिए चींटी जैसी मेहनत कर रहे हैं। आपके हीरो और आदर्श विनाशकारी विकास के समर्थक हैं।

यह हिमालय अब अंगार बन रहा है। इसका असर सभी पर होगा। कोई बड़ी जाति, बड़ा नाम, हिंदू, मुसलमान, सहज या कट्टर अथवा नास्तिक हो तो भी जलवायु परिवर्तन से अप्रभावित नहीं रहेगा।

इस समय इंसान और जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन वैश्विक तापमान का बढ़ना है। इसके खिलाफ कोई भी व्यक्ति कोई भी देश कोई भी समुदाय और कोई भी धर्म यदि खड़ा नहीं होता है तो वह वास्तव में सही से इसे समझ नहीं रहा है।

हिमालय का गर्म होना, इसके जंगलों का जलना, इसकी नदियों का मरना और इसके पहाड़ों का बर्फ विहीन होना बेहद अलार्मिंग है,एक चेतावनी है। इस समय आपका भाषण, आपका लेखन, आपकी कविता, आपके आंकड़े और आपकी यात्राएं जलवायु परिवर्तन को रोक नहीं सकेंगी। इसलिए हो सके तो अपनी सरकारों को पर्यावरण अनुकूल नीतियों को लागू करने के लिए मजबूर कीजिए। अपने हाथों में कुदाली लीजिए और अपनी गाड़ियों को गैराज में डालकर जंगलों, जल कुंडों, नदियों, पोखरों की हिफाजत के लिए खुद काम करना शुरू कीजिए। प्रकृति खुद पर्यावरण विद, खुद निर्धारक और निर्माता है। इंसान को उसका सहयोगी बनना होगा।विरोधी बनकर हमने अपने जीवन के मुख्य जीने के आधारों को ही खतरे में डाल दिया है।

इसे आप आह्वान समझिए, बकवास कहकर उड़ा दीजिए या फिर समृद्ध हिमालय समृद्ध प्रकृति के अभियान में अपनी हिस्सेदारी कीजिए। यह आपकी स्वतंत्रता है।

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