सुरभि न्यूज़ ब्युरो
कुमारसैन, शिमला
सतलुज घाटी के इतिहास एवम् संस्कृति पर डॉ. हिमेन्द्र बाली द्वारा लिखित दो पुस्तकें-सतलुज घाटी की सांस्कृतिक परम्पराएं और सतलुज घाटी का सांस्कृतिक वैभव का कुमारसैन उपमण्डल के अंतर्गत अतुल रिजेन्सी सैंज में उपमण्डलाधिकारी (नागरिक) सुरेन्द्र मोहन ने विमोचन किया।
सुकेत संस्कृति साहित्य एवम् जनकल्याण मंच द्वारा आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में हिमाचल प्रदेश के हिमालयी संस्कृति के प्रतिष्ठित विद्वानों ने भाग लिया। डॉ. हिमेन्द्र बाली पश्चिमी हिमालयी संस्कृति, कला एवम् लोकपरम्पराओं पर पिछले साढ़े तीन दशक से मौलिक शोध कार्य में निरन्तर जुड़े रहे हैं। डॉ. बाली के शोध आलेख देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होते रहे हैं।
सतलुज नदी का ऋग्वैदिक नाम शुतुद्रि रहा है जो उस काल में यमुना, सरस्वती एवम् गंगा जैसी पवित्र नदियों की श्रेणी में सम्मिलित रही है। दोनों पुस्तकों में सतलुज नदी के दोनों तटों पर अवस्थित हिमाचल प्रदेश के छ: जिलों की सांस्कृतिक परम्पराओं और देव आस्थाओं का विशद वर्णन किया गया है।
पुस्तकों के लोकार्पण समारोह का आरम्भ मां सरस्वतीवंदन व दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। तदोपरान्त डॉ. हिमेन्द्र बाली ने अपनी दोनों पुस्तकों का संक्षिप्त और सारगर्भित परिचय विद्वानों को दिया। उन्होने सतलुज नदी के वैदिक महत्व को रेखांकित करते हए उन्होने कहा कि लोकाख्यान में इस नदी घाटी में यह नदी गंगा नदी की तरह पवित्र और तापों को हरण करने वाली है। इस सदानीरा नीलवर्णा व वेगवती नदी का उद्गम कैलाश मानसरोवर के समीप राक्सताल से हुआ है और यह नदी पौराणिक नगर शौणितपुर (सराहन), रामपुर बुशहर, महाभारतकालीन राज्य कुलिंद,सुकुट और चंदेल वंशजों के क्षेत्र कहलूर राज्य से होकर गुजर कर यहां की संस्कृति को प्रभावित करती आयी है।
सतलुज घाटी क्षेत्र में आदिकाल में नागों की सुदृढ़ सत्ता रही है। ऋग्वैदिक काल में पश्चिमी हिमालय में आर्यों के आगमन से यहां के शक्तिशाली नागों का उनके साथ लम्बा संघर्ष हुआ। सतलुज व गिरि क्षेत्र के अंतर्गत श्रीपटल निरमण्ड, सुकेत,बड़ागांव शांगरी और सिरमौर क्षेत्र में आज भी बूढी दिवाली के अवसर पर नाग-आर्य संघर्ष की घटना को आनुष्ठानिक रूप से निरूपित किया जाता है।
डॉ. हिमेन्द्र बाली ने कहा कि सतलुज घाटी में सृष्टि के आरम्भ से ही नाग, शैव, शाक्त, वैष्णव, सौर एवम् गाणपत्य मत प्रचलित रहे हैं। यही कारण है कि यहां देव समुदाय में पंचदेव पूजा के दर्शन होते हैं और मंदिरों के कलात्मक स्वरूप में मतों का अंकन उत्कीर्णत्व व विग्रहों में देखा जा सकता है। यहां आयोजित देवोत्सव व लोकोत्सव में दैवीय सत्ता के प्रति सम्मान का भाव द्रष्टव्य है।
डॉ. हिमेन्द्र बाली ने कहा कि सतलुज घाटी के धार्मिक अनुष्ठानों,सांस्कारिक परम्पराओं और सामाजिक क्रियाकलापों में प्राक् वैदिक और वैदिक संस्कृति के दिग्दर्शन होते हैं। उन्होने कहा कि पुस्तकों में सतलुज घाटी की परम्पराओं व हिमालयी गरिमा को उद्घाटित किया गया है।