Listen to this article
सुरभि न्यूज़
बिलासपुर
कल्याण कला मंच की मासिक कला कलम संगोष्ठी का आयोजन भगेड़ के अपराजिता बाल आश्रम में हुआ, जिसकी अध्यक्षता प्रो.लेख राम शर्मा ने की जबकि विशिष्ट अतिथियों में रेणु कुमारी व डॉ.जगदीश चंद शर्मा उपस्थित रहें। मंच संचालन महासचिव तृप्ता कौर मुसाफिर ने किया। कार्यक्रम की शुरूआत मां सरस्वती व काले बाबा की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलित कर सरस्वती वंदना के साथ की गई। कार्यक्रम के अध्यक्ष व अतिथियों के स्वागत उपरान्त कला कलम संगोष्ठी में सर्वप्रथम डियारा सैक्टर के कर्मवीर कंडेरा ने अपनी कविता संक्कून की बात मत कर ऐ दोस्त यह रविवार जब हम बच्चे थे अक्ल के कच्चे थे लेकिन मन के पूरे सच्चे थे अपनी रचना सुना कर आगाज किया।
सोई के लश्करी राम ने भला ओ शहरा रे लोका घुमारवीं जिया जो सैर करने जो जाणा, मिहाड़ा के बृजलाल लखनपाल ने उच्ची उच्ची रीड़ियां ते डुग्गे डुग्गे नालुआ ते खड़े ओ कुवालुआ ते लेणीयां गवाहियां, घुमारवीं के केशव शर्मा ने पल में रूठ जाना और पल भर में मान जाना बचपन का ज़माना, कल्लर की आशा कुमारी ने पैदा करने पर जाने कौन कौन से हवन किए, जुखाला के बाबू राम धीमान ने नन्हे मुन्ने प्यारे बच्चों सबकी आंख के तारें बच्चों, देवली की चिंता देवी ने पिंजर के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोई, झंडूता की रेखा चन्देल ने सोने देता गगरूआ चल पानी जो जाना, राजपाल ने मेरे मालिक के दरबार में सब जीवों का खाता, चैन सिंह ने युद्ध नहीं इतना आसान ना ही आसान है युद्ध की परिभाषा, बेकल के कैप्टन डॉ. जय महलवाल ने मित्रों हुण नहीं रिया से ज़माना ताज़े मर्द रखां थे दो दो ज़नाना, बाड़ी मंझेडवां के सूबेदार बीर सिंह चंदेल ने न जाओ श्यामा मधुबन से तेरे बिन दिल नी लगणा, घुमारवीं के डॉ. अनेक राम सांख्यान ने पेड़ एक धड़ाम से गिरा मात्र पेड़ प्राण वायु देव नहीं, दनोह के अमरनाथ धीमान ने जाण जे परमात्मे फरमान आऊंणा छोड़ने पौणा ए संसार, घुमारवीं की वीना वर्धन ने सुनो लोकों ब्याह री कहानी, धर्म चंद धीमान ने सहारे मत ढूंढना प्यारे ए अक्सर धोखा देते हैं , कल्लर की पूजा कुमारी तेरे माथे जो बिन्दलू लाणा गोरीऐ, तरेड़ के रविद्र चंदेल कमल ने कुछ ख्वाब थे जो अधूरे रह गये कुछ मंजिलों से मिलना था सफर अधूरा रह गया, घुमारवीं की रेणु कुमारी ने धन्यवाद कल्याण कला मंच का शुभाशीष, कल्लर की मनीषा भाटिया ने पापा मेरे जोक के पंच लाइन भी हैं, डाहड़ के बुद्धि सिंह चंदेल ने धर्म पूछ कर तूने अधर्म किया सुन ले रे पाकिस्तान, कल्लर की तृप्ता कौर मुसाफिर ने शिव भोले भंडारी जटाधारी, बध्यात के सुरेंद्र सिंह मिन्हास ने आया समा हुन यारों तरसैया रा चोलणू परी तया महात्मी ईए खटाईया रा, घुमारवीं के डॉ.जगदीश चंद वर्मा ने संस्कृति को संजोने का प्रयास करना है, कोलकां के प्रो. लेख राम शर्मा ने पहाड़ा रे मणुआ ऐ तू क्या कामयादा देवतयां री भूमिया रा अंश तू कीतो इन सभी रचनाकारों ने अपनी – अपनी रचना सुनाई। अंत में अध्यक्ष ने सभी रचनाकारों की रचनाओं का विवर्ण प्रस्तुत किया। मंच के संयोजक अमरनाथ धीमान ने उपस्थित सभी महानुभावों का आभार जताया।