सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
कुल्लू
कुदरत ने हिमाचल प्रदेश में जमकर तबाही मचाई लेकिन कुल्लू जिला में कुदरत ने तबाही का ऐसा मंजर दिखाया कि लोग वर्षों तक इसे नहीं भूल पाएंगे। जबकि जिला की सैंज घाटी में कुदरत ने ऐसा भयानक खेल खेला की पूरा बाजार ही तबाह हो गया। जिसमें 40 दुकानें व 30 घर पूरी तरह तबाह हो गए। लोगों की ता उम्र की कमाई उनकी आंखों के सामने खत्म हो गई। लेकिन वह असहाय होकर इस भयावह मंजर को देखने के अलावा कुछ नहीं कर पाए।
इस पूरे मामले में हैरतअंगेज पहलू यह रहा कि बीते शनिवार से प्रदेश भर सहित कुल्लू जिला में भी मूसलाधार बारिश हो रही थी। इस दौरान व्यास व पार्वती नदी के साथ जिला के तमाम छोटे-बड़े नदी नाले भयंकर उफान पर थे। जिन्होंने पूरे जिला में भारी तबाही मचाई और अरबों का नुकसान हुआ।
कुदरत ने सबसे ज्यादा कहर जिला की सैंज घाटी के मुख्य बाजार सैंज में ढाया। जहां सैंज घाटी का मुख्य बाजार पूरी तरह से तबाह हो गया। लेकिन आपदा प्रबंधन के साथ-साथ राहत और बचाव कार्यों के दावे करने वाला जिला प्रशासन इस तबाही के मंजर से पूरी तरह बेखबर रहा।
शुक्र तो यह रहा कि सोशल मीडिया में आई एक तस्वीर ने इस भयावह मंजर का खुलासा किया। उसके बाद प्रशासन की आंखें खुली और रविवार को हुई इस तबाही का जिला प्रशासन को मंगलवार के दिन पता चला। उसी दिन मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू भी बारिश से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए कुल्लू पहुंचे। तो उन्हें भी इस बात की जानकारी दी गई तो वह हेलीकॉप्टर के माध्यम से सैंज पहुंचे और उन्होंने बाढ़ प्रभावित लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने का भरसक प्रयास किया।
उन्हें रंज इस बात का है कि आपदा प्रबंधन के दावे करने के साथ-साथ आपदा से बचाव के लिए मॉक ड्रिल व अन्य कार्यक्रम आयोजित करने
वाले जिला प्रशासन को इस तबाही की जानकारी ही नहीं लग पाई। जबकि जिला प्रशासन हर साल आपदा प्रबंधन के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए खर्च करता है। लेकिन जब आपदा आई तो लोगों की मदद करने के लिए आपदा प्रबंधन कोई संसाधन पहुंच नहीं पाए।
बल्कि इस आपदा की घड़ी में जिला प्रशासन ने बार-बार अपील करते हुए लोगों को घरों में ही रहने का आग्रह किया। हालांकि वह किसी हद तक ठीक भी था। लेकिन प्रशासन ने वाहनों की आवाजाही पूरी तरह ठप कर दी। जबकि कुल्लू से भुंतर बजौरा व पनारसा तक हाईवे वाहनों की आवाजाही के लिए काफी हद तक ठीक था।
लेकिन इसके बावजूद भी जिला प्रशासन ने इस मार्ग पर लोगों की आवश्यक आवाजाही के लिए भी बसों का संचालन पूरी तरह बंद रखा। वही मनाली से लेकर बजौरा पनारसा तक व्यास नदी ने अपना कहर ढाया और लोगों की जिंदगी भर की कमाई को पल भर में छीन लिया।
भले ही इस भयानक मंजर में बहुत सारी व्यवस्थाएं गड़बड़ होती हैं और लोगों को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिसमें जिला प्रशासन भी कई बार असहाय साबित होता है। लेकिन जिस तरह से बिजली पानी व वाहनों की आवाजाही पूरी तरह से ठप रखी, उससे काफी बड़े सवाल खड़े होते हैं कि आपदा प्रबंधन का राग अलापने वाले आपदा के दौर में कहां गायब हो जाते हैं?
जिला मुख्यालय पर लंकाबेकर में हुए एक हादसे ने ही इसकी पोल खोल दी। लंका बेकर में एक कच्चे मकान के ढहने से उसमें दबी एक महिला को रेस्क्यू करने में ही लगभग 2 से 3 घंटे का समय लग गया। वहां पर भी आपदा प्रबंधन के नाम पर कोई आधुनिक सुविधा उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में महिला को बचाने में काफी देर हो गई और तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। एक तरह से इस मामले से आपदा में आपदा प्रबंधन की पोल पूरी तरह से खुल गई।
भले ही मौसम खुलते ही मुख्यमंत्री के आगमन पर पूरा प्रशासनिक अमला राहत और बचाव कार्य में जुट गया। लेकिन लोगों में इस बात का रंज है कि जिस तरह से प्रशासन द्वारा आपदा प्रबंधन के दावे किए जाते हैं और हकीकत में वह आपदा के समय पूरी तरह से खोखले साबित होते हैं। हालांकि इस आपदा ने लोगों को भी यह एहसास करवा दिया कि अगर प्रकृति के साथ खिलवाड़ करोगे तो उसके नतीजे इस तरह से भुगतने ही पड़ेंगे।
कल भी जारी………..










