सुरभि न्यूज़ कुल्लू। हिमालय नीति अभियान संगठन और वन अधिकार एवम् ग्रामीण विकास संगठन द्वारा पवित्र स्थल में मणिकर्ण के राम मंदिर हॉल में क्षेत्र की 12 पंचायतों की 62 वन अधिकार समितियों के प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमे वन अधिकार समितियों के 100 से ज्यादा पदाधिकारियों व सदस्यों ने भाग लिया। संगठनों ने जानकारी देते हुए बताया कि कार्यशाला में 62 वन अधिकार समितियों ने अपनी-अपनी सामुदायिक वन संसाधनों पर दावों की फाइल तैयार करने का प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा जल्द ही वन अधिकार कानून 2006 के तहत इन 62 फाइलों को उपमंडल स्तर की समिति को आगामी कार्यवाही के लिए प्रेषित किया जाएगा। कार्यशाला के मुख्यतिथि व हिमालय नीति अभियान के राज्य सचिव संदीप मिन्हास ने उपस्थित प्रतिनिधियों को बताया कि वन अधिकार अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासियों को चार तरह के अधिकार देता है जिनके लिए लोगों को दावा फाइल तैयार करके उपमंडल स्तर की समिति को भेजा जा रहा है ।

परंतु बड़ी विडंबना की बात है कि इस कानून के क्रियान्वयन की प्रक्रिया में प्रदेश के जो विभाग शामिल हैं वो विधानसभा तक जानकारी पहुंचाने में असमर्थ है जैसा पालमपुर के विधायक आशीष बुटेल द्वारा सवाल पूछने पर सामने आया है। दरअसल, जिन 3 विभागों की जिम्मेवारी है उनका आपसी तालमेल ही नहीं है , इसलिए सरकार को वन अधिकार कानून के संदर्भ में राज्य स्तर पर ओएसडी कार्यालय या कोई स्पेशल सेल बनाना चाहिए क्योंकि वन अधिकार कानून सिर्फ दावों तक ही सीमित नही है बल्कि तमाम पुराने रिकॉर्ड और वनों के नक्शों में बदलाव होना है और इसी तरह का स्पेशल सेल प्रदेश में प्रत्येक जिला स्तर पर भी सरकार को बनाने की आवश्यकता है। कार्यशाला में वन अधिकार एवम् ग्रामीण विकास संगठन (हि. प्र.) के राज्य अध्यक्ष विशाल दीप ने बताया कि बड़े पैमाने पर वन अधिकार कानून के तहत धारा 3(2) में विकास के अधिकार का दुरुपयोग करके सरकारी तंत्र वन अधिकार समितियों से एनओसी लेकर विकास कार्यों के लिए वन भूमि परिवर्तन व हस्तांतरण की कागजी प्रक्रिया को वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत करवा रहा है और आनन-फानन में ऐसी फाइलों को जिला स्तरीय समितियां अप्रूवल दे रही हैं। सरकारी तंत्र और प्रशासन की इस तरह की कार्यवाही दोनो कानूनों वन अधिकार कानून 2006 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 की अवहेलना है।

वन संरक्षण अधिनियम 1980 के फॉर्म तहत तैयार फाइलों को वन भूमि परिवर्तन व हस्तांतरण की मंजूरी देहरादून से मंत्रालय के कार्यालय से मिलती है और वन अधिकार कानून 2006 के तहत 13 तरह के विकास कार्यों की फाइल बनने की प्रकिया ग्राम सभा की अनुशंसा से शुरू होती है जिसमे प्रत्येक केस में 1 हैक्टेयर से ज्यादा वन भूमि विकास कार्यों के लिए परिवर्तित व हस्तांतरित नहीं की जा सकती और सारी प्रक्रिया संबंधित ग्राम सभाओं की निगरानी में कमेटी द्वारा होती है। परंतु कुछ जिला में जिला स्तरीय समितियों द्वारा कानूनों को ताक पर रखकर 1 हैक्टेयर से ज्यादा वन भूमि भी परिवर्तित कर दी है वो भी एनओसी लेकर जबकि इस तरह का कोई कानूनी प्रावधान नही है। भारत सरकार के जनजातीय मंत्रालय द्वारा वन अधिकार कानून 2006 के तहत धारा 3(2) में विकास कार्यों को लेकर जो नियम बनाए गए हैं प्रदेश के प्रशासन को उन नियमों के अंदर रह कर कार्य करना चाहिए। कार्यशाला में वन अधिकार समितियों को भारत सरकार के मंत्रालय द्वारा बनाए गए नियम और फॉर्म ए और बी संगठन की तरफ से उपलब्ध करवाए गए। वन अधिकार कानून के सुचारू क्रियान्वयन को लेकर मणिकर्ण क्षेत्र में 18 सदस्यीय क्षेत्रीय कमेटी का गठन किया गया जिसमे प्रधान सुंदर सिंह और सचिव सुनील दत्त को सर्वसहमति से चुना गया। कमेटी द्वारा लोगों को वन अधिकार कानून पर जानकारी देकर जोड़ा जाएगा ताकि सामुदायिक वन संसाधनों पर दावे जल्द ग्राम सभाओं में प्रस्तुत हों।