पुकारा होगा कृष्ण ने, हृदय से सुदामा को। कोई यूँ ही दोस्ती में नंगे पाव, घरद्वार नहीं छोड़ता, कोई सिर्फ दो मुट्ठी चावल के लिए, ब्रह्मांड नहीं लुटाता-काव्य वर्षा

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पुस्तक समीक्षा

सुरभि न्यूज़

समीक्षक
रविकुमार सांख्यान, बिलासपुर।

काव्य संग्रह : नील गगन को छूने दो ।

अपनी माँ श्रीमती पवन कुमारी, भाभी श्रीमती मोनिक सिंह एवं मददगार सुधीजनों को समर्पित ” नील गगन को छूने दो ” 112 पृष्ठों के आकार में117 कविताओं का इन्द्रधनुषी गुलदस्ता है जिसमें दिव्यांग होते हुये भी कवयित्री ने मन के आंतरिक भावों को स्वतः सुखाय से सर्व सुखाय की ओर ले जाने की उत्कंठा से पाठकों के सामने प्रस्तुत करके एक अनूठी सीख प्रस्तुत की है।

निखिल प्रकाशन आगरा (उत्तरप्रदेश ) से प्रकाशित इस कृति का आर्शीवचन व प्रस्तावना क्रमशः डॉ॰ विजय कुमार पुरी व वीरेन्द्र शर्मा वीर ने लिखी है जिसमें कवयित्री के जीवन संघर्ष व कृति प्रकाशन के बीच के पड़ावों बारे बताया है । मन की बात में अनेक बीमारियों से जूझने के बावजूद भी अपने नाम काव्यवर्षा को पर्याय बनाती हुई सचमुच माँ सरस्वती की अनुकंपा से सृजनशीलता के नव पल्लवों का बीजारोपण करने मे आतुर प्रतीत होती है।

इस काव्य संग्रह की पहली कविता” नीलगगन को छूने दो ” से लेकर अंतिम कविता ” बेटी पैदा न करुँगी ” में संकेतों बिम्बों, अस्मिता, दर्द, व्याकुलता, बेचैनी, छटपटाहट, प्रेमरस, प्रकृति चित्रण, जीवटता की ललक, रूढ़िवादी सोच, तनावग्रस्त कुंठित जीवन में यथार्थ का बोध व्यक्त है। कहीं- कहीं अबोध बालमन के दिवास्वप्नों को साकार करने की तीव्र उत्कंठा है।

कविता संग्रह का नामकरण बिलकुल सही प्रतीत होता है। काव्यवर्षा मन में दृढ़ निश्चय, कर्मठता से मंजिल की ओर निरंतर बढ़ते रहने का संदेश देकर असफलताओं से भयभीत मानव को सदैव आशावादी सोच की सीख देती प्रतीत होती हैं।
प्रथम कविता की निम्न पंक्तियां ध्यान आकृष्ट करती हैं।
नीलगगन को छूने दो,
ये आस का पंछी कहता है।
क्या रखा है सूरज में, जुगनू भी उजला रहता है।
तेरी प्यास बुझाऊँ साईं,
पपीहे से कुंआ कहता है।
” शोहरत के हक़दार बहुत हैं ” कविता में मानव की अनुकूल, प्रतिकूल परिस्थितिओं में साथ देने वाले सज्जन जनों का मिलना एक दुर्लभ संयोग ही कहा गया है। गुलाब कविता में फूल ही व्यथा तथा देवी कविता में कलियुगी मनुष्य के नारी के प्रति आभासी व वास्तविक सोच के विरोधाभास को दर्शाया गया है।

दशमुख कविता में चंचल मन के वश में न होने के कारण सीता हरण के प्रसंग की अमूल्य बात से सम्पूर्ण जड़-चेतन को सीख लेने की बात कही है।” मेरा उछाला हुआ सिक्का” में कर्मप्रधानता व ” राम बन के देखो ” में अर्न्तमन में ईश्वर के सदाबहार बसेरे की बात कही गयी है।

“भेडिया” कविता में हिम्मत से बाज़ सदृश शैतान को मात देने के ज़ज्बे को उकेरा गया है। पाठशाला न जा सकने की मजबूरी को दरकिनार करते हुये आगंतुकों को पुस्तक संग ही घर बुलाने को आतुर लेखिका के हौसले को नमन करने का मन करता है।

“एक तरफा नहीं होता” कविता में प्रेमरस की बात है। पुकारा होगा कृष्ण ने, हृदय से सुदामा को।
कोई यूँ ही दोस्ती में नंगे पाव,
घरद्वार नहीं छोड़ता,
कोई सिर्फ दो मुट्ठी चावल के लिए,
ब्रह्मांड नहीं लुटाता। पृष्ठ79

घर में रहकर शारीरिक, मानसिक परेशानियों से जूझते हुये अथक परिश्रम, सतत् प्रयास से कविता, गीत, लघुफिल्मकथा लेखन के क्षेत्र में प्रसिद्धि पाकर उन दिव्यांग, निराश, हताश, मजबूर प्राणियों के सपनों को साकार करने की दिव्य प्रेरणा जागृत करने का समुचित प्रयास किया है। पुस्तक की रूप सज्जा व लेखिका के श्रम को देखते हुये एक सौ पच्चीस रुपये मूल्य उचित प्रतीत होता।

गाँव मैहरी डा० नाल्टी तहसील घुमारवीं
जनपद बिलासपुर हि.प्र सचलवार्ता-9817404571

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