सुरभि न्यूज़
खुशी राम ठाकुर, बरोट
उत्तर भारत में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला शुरुआत साल का प्रथम पर्व लोहड़ी 13 जनवरी शनिवार से शुरू हो गया है। इस पावन पर्व पर लोग अपने – अपने घरों में राजमाह व माह की खिचड़ी का भरपूर आनंद उठाएंगे। जिला की छोटाभंगाल तथा जिला मंडी की चौहार घाटी के लोगों ने इस पावन पर्व के चलते मकर संक्राति की पूर्व संध्या 13 जनवरी को अपने – अपने घरों में विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान तैयार किए तथा अपने सगे – सम्बन्धियों के साथ मिल बैठकर पकवानों का भरपूर आनंद उठाया। वहीं 14 जनवरी मकर संक्राति की सुबह सबसे पहले महिलाएं, पूरुष तथा बच्चे नहा – धोकर अपने इष्ट कुलजो की पूजा अर्चना करेंगे उसके बाद दोपहर को राजमाह तथा माह की खिचड़ी का स्वाद लेंगे। इस पावन पर्व में घाटियों के दुर्गम गाँवों में स्थानीय तथा दुरदराज़ से आने वाले लोगों की मेहनवाजी भी खूब होती है। एक –दूसरे को निमंत्रण देने पर भी खान पान का भरपूर आनंद उठाते हैं। इस पर्व में महिलाएं अपने मायके में अवश्य शिरकत करती है जिस कारण लोहड़ी के इस पर्व की और भी रौनक बढ़ जाती है। चौहार घाटी के दुर्गम गाँवों की बात की जाए तो मकर संक्रांति के तीसरे दिन 16 जनवरी की शाम को कौलू का लोकल पर्व भी हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। यह लोकल पर्व चौहार घाटी के बड़ी झरवाड़, तरवाण, ढरांगण, कहोग, कढ़ीयाण नोट, लपास, सचान तथा लच्छयाणं के दुर्गम गाँवों में मनाया जाता है। इस पर्व में गाँव में स्थापित माता फुगणी, माता सतबादनी देवी व देवी – देवताओं के मंदिर के प्रांगण में गाँव के सभी बच्चे, युवक, युवतियां तथा बुजुर्ग एकत्रित होकर खड़े हो जाते हैं।गाँवों की प्रत्येक घर की एक-एक महिला अपने घर से छोटी – छोटी गोलाकार रोटियां बनाकर टोकरी में भर कर लाती है और उसी प्रांगण में ऊंचे स्थान पर खड़े होकर प्रांगण में खड़े हुए झुण्ड के ऊपर लायी हुई रोटियों की कौलू – कौलू का राग लगाते हुए एक साथ फेंकती है उस समय का दृश्य बहुत ही रोमांटिक भरा रहता है। लोगों का मानना है कि जो सबसे ज्यादा रोटियों को अपने कब्जे में लेता उसके घर में भविष्य में उतनी सुख – समृद्धि रहती है। उसके उपरांत बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक सब एक साथ मिलकर हे हाम लोहरा हिजकलो खेला तथा भेड़ा पुहालू री जाणा जैसे पारम्पारिक गीतों को लयबद्ध से गाते हैं। वहीँ छोटाभंगाल के दुर्गम गाँवों में लोहड़ी मकर संक्रान्ति के दूसरे दिन सराला नामक लोकल पर्व मनाया जाता हैं। यह सराला नामक लोकल पर्व पांच से सात दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान गाँववासी अपने गाँव से दस से पन्द्रह – पन्द्रह परिवारों का समूह बनाते हैं तथा खान-पान की सारी सामाग्री को बनाकर लाते हैं और सभी गांव के समूह एक चुनिन्दा स्थान पर एकत्रित होकर एक साथ मिल बैठकर प्रसन्नता पूर्वक उस खान-पान का भरपूर आनंद उठाते हैं। सराला नामक यह लोकल पर्व लगभग एक सप्ताह तक चलता है। सदियों पूर्व क्षेत्र के दुर्गम गाँवों में यह लोहड़ी का त्यौहार लगभग पन्द्रह दिनों तक चलता था मगर आजकल यह मात्र तीन से सात दिन तक ही मनाया जाता है। दोनों क्षेत्र के लोग जीवन की कठिनाइयों को भूलकर लोहड़ी के रंग में रंग जाते है और खूब मौज मस्ती करते हुए खानपान का भरपूर आनंद लेते है।









