सुरभि न्यूज़
नरेंद्र भारती, भंगरोटू
बेरहम बरसात का सैलाब तो थम गया है लेकिन आंसुओ का सैलाब नहीं थम रहा है। हर गाँव में करुण क्रदन मचा हुआ है। लोग सदमे में है ऐसा सदमा लगा है की इससे उभरने में सदियाँ लग जाएगी। हर तरफ मातम छाया हुआ है, आँखे पथरा गई है। चूल्हे नहीं जल रहे हैं, राहत शिविरों में रातें कट रही हैं। आपदा से गस्त लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा की विपदा पड़ जाएगीऔर पिछले नौ दिनों से खाना पीना राहत शिविर में ही चल रहा है। अपनों की यादें सता रही हैं जो बाढ़ में बिछड़ गए हैं और बह गए हैं। डरावनी रात बार बार याद आती है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बेरहम प्रकृति ने चंद मिनटों में तबाही का जो मंजर दिखाया है बहुत ही भयानक था।
सयाँज के अभागे गांव पंगलियूर में बाढ़ ने एक ही परिवार के नौ लोगों को छीन लिया, केवल मात्र एक लड़की ही जिन्दा बची है। वहीं बाड़ा में भी एक नौ महीने की नवजात बच गईं है जबकि उसके माँ बाप मौत के आगोश में समा चुके है। 30 जून की काली रात ने तबाही की ऐसी इबारत लिखी कि यह इतिहास बन गईं है। आने वाली सात पीढ़ियो को भी यह डरावना बरसात का कहर याद रहेगा। बरसात के इस कहर ने ऐसे ज़ख्म दिए है की ज़ख्म तो भर जायेंगे पर घाव रिसते रहेंगे।
मंगलवार को चम्बा के चुराह में बादल फटने से लोगों के खेत बह गए गनीमत रही की कोई जानी नुकसान नहीं हुआ। 30 जून को करसोग में बादल फटने से बाढ़ की चपेट में आने से लापता ललित कुमार का शव करला के पास सतलुज नदी में बरामद हो गया जबकि अभी बहुत लोग लापता हैं। आलीशान आशियाने मिट्टी बनकर जमीदोज हो गए हैं जिससे लोग बेघर हो गए हैं। प्रकृति ने सब तहस नहस कर दिया है।
शवों की तलाश के लिए दिन रात टीमे जुटी है लेकिन अभी तक शव नहीं मिल रहे हैं। बाढ़ में बह चुके लोगों के परिजनों के आंसू सूख चुके है। बाढ़ में खो चुके अपनों की तलाश में मारे मारे फिर रहे हैं पर अपनों की लाशें नहीं मिल रही है।प्रकृति के इस विनाशकारी कहर से जनमानस खौफजदा है। कही फिर से पहाड़ का मलवा न आ जाए लोग खौफ के साए में राते काट रहे हैं।
वर्ष 2018 में भी बहुत मानवीय त्रासदी हुई थी और 2024 में भी हिमाचल में प्रकृति के कहर से हजारों लोग मारे गए थे। समेज गांव का नामोनिशान मिट गया था और 42 लोग अकाल बेमौत मारे गए थे। प्रदेश में पहले भी कई भीषण त्रासदियां हो चूकी है। कहीं मकानों के ढहने से बच्चों से लेकर बूढ़े बुजुर्ग मारे गए है तो कहीं सैंकडों बेज़ुबान पशुओं की दबकर मौत हो गई। दर्जनों लोग पानी में बह गए और करोडों की संपति तबाह हो गई। पहाड के मलवे की चपेट में आने से काफी जानमाल का नुक्सान हो रहा है। प्रकृति की इस विभिषिका में हजारों लोग अपंग हो गए है, बच्चे अनाथ हो गए लाशे मलवे में दफन हो गई है।
सरकार को चाहिए की प्रत्येक गांव से लेकर शहरो तक आपदा प्रबंधन कमेटियां गठित करनी चाहिए जिसमें डाक्टर नर्स व अन्य प्रशिक्षित स्टाफ रखना चाहिए ताकि व त्वरित कारवाई करके लोगों केा मौत के मुंह से बचा सके। अक्सर देखा गया है कि जब तक आपदा प्रबंधन की टीमें घटना स्थनों पर पहुचती है तब तक बची हुई साँसे उखड़ जाती है, अगर समय पर आपदा ग्रस्त लोगों को प्राथमिक सहायता मिल जाए तो हजारों जिदंगियां बचाई जा सकती हैं।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार को कालेजों व स्कूलों में भी माकड्रिल जैसे आयोजन करने चाहिए ताकि अचानक होने वाली आपदाओं से अपना व अन्य का बचाव किया जा सके। स्कूलो व कालेजों मे चल रहे राष्ट्रीय सेवा योजना व स्काउट एंड गाइड के स्वंयसेवियों को आपदा से निपटने के लिए पारगंत किया जाए। अगर यही स्वयसेवी अपने घर व गांवों में लोगों को आपदा से बचने के तरीके बताए तो काफी हद तक नुक्सान को कम किया जा सकता है।
सरकार को चाहिए कि आपदा से बचाव के लिए प्रत्येक विभाग के कर्मचारियों को पूर्वाभ्यास करवाया जाए ताकि समय पर काम आ सके।पुलिस व अग्शिमन के कर्मचारियों को भी समय समय पर ऐसे आयोजन करते रहना चाहिए।अगर सभी लोग आपदा से बचाव के तरीके समझ जाएगें तो तबाही कम हो सकती है। प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो मानव को अपनी जीवन शैली बदलनी होगी, प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करनी होगी, नदियो व नालों से दूर मकान बनाने होंगे। अगर अब भी मानव ने प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद नहीं किया तो प्रकृति अपना बदला लेती रहेगी और मानव को सबक सीखाती रहेगी। बादल फटते रहेंगे, बाढ़े आती रहेगी। सतर्कता बरतनी होगी ताकि फिर कभी ऐसी त्रासदी न झेलनी पड़े।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार है