भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की मंडी जिला कमेटी ने जारी ड्राफ्ट बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 के प्रति की कड़ी आलोचना

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सुरभि न्यूज़
मंडी, 15 अक्टूबर

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की मंडी जिला कमेटी ने हाल ही में जारी ड्राफ्ट बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 की कड़ी आलोचना करते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। माकपा के मंडी जिला सचिव कुशाल भारद्वाज ने पार्टी की तरफ से प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अब तक इस विधेयक के विभिन्न संस्करणों को लागू करने की बार-बार असफल कोशिशों के बावजूद, मोदी सरकार एक बार फिर तथाकथित सुधारों के नाम पर इस बदनाम प्रयास को आगे बढ़ा रही है। 2025 का यह संस्करण पहले से भी अधिक आक्रामक है और देश के बिजली क्षेत्र का निजीकरण, व्यवसायीकरण और केन्द्रीकरण करने का प्रयास करता है। यह न केवल सार्वजनिक उपयोगिताओं, उपभोक्ता अधिकारों, संघीय ढांचे और लाखों बिजली कर्मियों की आजीविका के लिए खतरा है, बल्कि दशकों से निर्मित एकीकृत और सामाजिक उद्देश्य आधारित बिजली व्यवस्था को नष्ट करने की साजिश है। यह विधेयक मुनाफे वाले क्षेत्रों को निजी कंपनियों के हवाले करेगा और घाटे व सामाजिक जिम्मेदारियों का बोझ राज्य की बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) पर डाल देगा।

उन्होंने कहा कि यह विधेयक एक ही क्षेत्र में एक से अधिक वितरण लाइसेंसधारियों को अनुमति देता है, जो कि सार्वजनिक पैसों से बने बिजली नेटवर्क का इस्तेमाल कर सकेंगे। इससे निजी कंपनियाँ केवल अमीर और उद्योगपतियों को सेवाएं देकर मुनाफा कमाएंगी, जबकि सार्वजनिक वितरण कंपनियों को ग्रामीण और घरेलू उपभोक्ताओं की सेवा करनी पड़ेगी। इसका परिणाम होगा – सार्वजनिक वित्त का संकट, क्रॉस-सब्सिडी का अंत और बिजली दरों में भारी वृद्धि। केन्द्र सरकार द्वारा प्रोत्साहित स्मार्ट मीटरिंग इस निजीकरण अभियान का तकनीकी औजार है। पांच वर्षों के भीतर क्रॉस-सब्सिडी को समाप्त करने का प्रस्ताव सार्वजनिक उपयोगिताओं को भारी घाटे में डाल देगा और गरीब तथा ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए बिजली को अत्यधिक महंगा बना देगा। क्रॉस-सब्सिडी कोई अक्षमता नहीं, बल्कि एक सामाजिक आवश्यकता है। इसे हटाने से किसानों और श्रमिकों में असमानता और संकट और गहरा होगा।

उन्होंने कहा कि विधेयक बिजली को एक बुनियादी मानव आवश्यकता से बदलकर एक व्यापारिक वस्तु बना देता है, जिससे अस्थिर मूल्य, असुरक्षित आपूर्ति और ऊर्जा सुरक्षा पर सार्वजनिक नियंत्रण कमजोर होगा। यह विधेयक केंद्र सरकार को राज्य की ऊर्जा नीतियों पर अत्यधिक अधिकार देता है, जिसमें राज्य विद्युत आयोगों और नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्यों पर नियंत्रण शामिल है। यह भारत के संविधान की संघीय संरचना पर सीधा हमला है और विशेष रूप से उन विपक्ष शासित राज्यों को नुकसान पहुंचाएगा, जो पहले से ही जीएसटी और केंद्रीय अनुदानों में भेदभाव के कारण वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं। निजीकरण और ओपन एक्सेस के कारण बड़े पैमाने पर नौकरी छिनेंगी, ठेका प्रणाली और आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिलेगा। यहां तक कि रक्षा क्षेत्रों में भी निजी लाइसेंसधारियों को अनुमति देकर यह विधेयक “व्यवसाय में सुगमता” के नाम पर राष्ट्रीय सुरक्षा से भी खिलवाड़ कर रहा है।

माकपा का मानना है कि यह विधेयक पूरे बिजली आपूर्ति तंत्र – उत्पादन से लेकर वितरण तक – को निजी एकाधिकारों के हवाले करने की एक व्यापक नवउदारवादी रणनीति का हिस्सा है। ओडिशा, दिल्ली और अन्य राज्यों के अनुभव से यह स्पष्ट है कि निजीकरण से केवल दरें बढ़ती हैं, सेवाएं कमजोर होती हैं और नौकरियाँ खत्म होती हैं।

उन्होंने कहा कि बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 को तत्काल वापस लिया जाए और बिजली को सामाजिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित किया जाए, न कि एक वस्तु के रूप में। उत्पादन और वितरण में किसी भी प्रकार के निजीकरण और फ्रैंचाइजिंग को रोका जाए, संघीय अधिकारों की रक्षा की जाए और राज्य की उपयोगिताओं को मजबूत किया जाए। माकपा इस ड्राफ्ट विधेयक का पुरजोर विरोध करती है तथा केंद्र सरकार से इसे वापस लेने की मांग करती है।

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