मानव खून से लाल होती सड़के, आखिर कब थमेगा मौत का तांडव 

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सुरभि न्यूज़

नरेन्द्र भारती, स्वतंत्र पत्रकार

एक बार फिर लाशों क़े ढेर लग गए उनको ढ़ापने क़े लिए कफ़न कम पड़ गए। एक ही दिन ग्यारह लोग मौत की नींद सो गए। 4 दिसंबर 2023के दिन काल बनकर 11 लोगों क़ो लील गया। तीन सड़क हादसों में कई घरों क़े चिराग़ बुझ गए। पहला हादसा शिमला जिला क़े सुन्नी में हुआ जहाँ एक पिकअप गहरी खाई में गिर गई और छः लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में जम्मू कश्मीर क़े चार लोगों की मौत हो गई। यह चारों एक ही गाँव क़े रहने वाले थे तथा एक हप्ता पहले ही काम पऱ सुन्नी आये थे।

दूसरा हादसा ददाहू संगड़ाह मार्ग पऱ एक टिपर खाई में गिर गया और दो लोगों की मौत हो गई और दो लोग घायल हो गए। तीसरा हादसा मंडी जिले क़े गोहर क़े केलोधार में शादी समारोह में भाग लेकर जंजेहली लौट रहे तीन लोगों की कार खाई में गिर गई और तीनों की मौत हो गई। दो घायल हो गए इस हादसे में पति पत्नी की मौत हो गई।एक दिन में ग्यारह लोगों की मौत से लोग सदमे में है।

हिमाचल में सड़क हादसे अभिशाप बनते जा रहे है।2023 के 11महिनों में हजारों लोग मौत के मुह में समा चुके है। हादसों को देखकर हालात ऐसे बन गए है कि अब सुबह घर से निकले लोग शाम को घर पहुंचेगे इसकी कोई गारंटी नहीं होती है। सड़क हादसों हर रोज घरों के चिराग बूझ रहे है।बच्चे अनाथ हो रहे है। मातओं व बहनों के सिदूंर मिट रहे है। यह सिलसिला अनवरत जारी है।

हिमाचल में किन्नौर से लेकर भरमौर तक प्रतिदिन भीषण व दर्दनाक सड़क हादसे होते जा रहे है। 2 नवबंर 2023 क़ो करवा चौथ के दिन मंडी व बिलासपुर में दो सड़क हादसों में तीन महिलाओ समेत छह की मौत हो गई थी और आठ लोग घायल हो गए थे। यह बहुत ही दर्दनाक हादसा हुआ था जो असमय ही इतनी जिंदगीयाँ लील गया था। करवा चौथ के दिन हुआ यह हादसा कभी नहीं भूलेगा। चारों तरफ चीखो पुकार मच गई पल भर में लोग चिथड़ों में बदल गए। भीषण सडक हादसे कब रुकेंगे यह एक यक्ष प्रश्न बन गया है। दर्दनाक हादसे में किसी ने अपना पति तो किसी ने अपनी पत्नी खोई है।

कोटली व घुमारवीं में हुए इन हादसों से लोग मातम में हैं। वर्ष 2018 में शिमला से 130 किलोमीटर दूर मुगंरा में एक वाहन के खाई में गिरने से 13 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। हादसें में मरने वालों में पांच लोग एक ही परिवार के थे। मरनेवालों में ज्यादातर चिड़गांव के गावों के थे। मरने वालों में चार महिलाएं आठ पुरुष व एक बच्ची थी। मृतक आपस में करीबी रिश्तेदार थे। मौत के इस दर्दनाक मंजर में हुई इन अकाल मौतों से हर हिमाचली गमगीन हुआ था। यह लोग हाटकोटी से उतराखंड में मदिर दर्शन को जा रहे थे। मगर मंदिर पहुचने से पहले ही काल के गाल मे समा गए।

हर रोज सड़के खून से लाल हो रही है लाशो के ढेर लग रहे है। गत वर्ष शिमला के रामपुर के खनेरी में पास बस के खाई में गिर जाने से 28 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। कुुुछ साल पहले भीषण हादसा मंडी के झिड़ी में हुआ था जब एक निजि बस चालक की लापरवाही के कारण 40 से अधिक लोगों की असमय मौत हो गई थी। व्यास नदी में गिरी इस बस में लगभग 70 सवारियां सवार थी। चालक कथित तौर पर मोबाईल फोन पर बात कर रहा था कि बस अनिंयत्रित हो गई और नदी में समा गई। पल भर में ही यात्री लाशों में तब्दील हो गये। गनीमत रही कि राफटिंग दल ने जान जोखिम में डालकर 17 लोगों की जिदंगियां बचा ली नही तो मरने वालों का आंकडा 60 हो जाता। यह हादसा नहीं सरासर हत्या थी कि चालक ने खुद छलांग लगाकर यात्रियों को असमय मौत के मुहं में धकेल दिया।

बीते हादसों से न तो यात्रियों ने और न ही प्रशासन ने कोई सबक सीखा। अक्सर देखा गया है कि ज्यादातर हादसे ओवरलोडिगं के कारण होते है क्योकि इस 42 यात्रियों कि क्षमता वाली बस में 70 यात्री सफर कर रहे थे।

प्रतिवर्ष हजारों लोग हादसों का शिकार होते है तथा इतने ही घायल होते है लोग असमय काल के गाल में समाते जा रहे हैं मगर हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते ही जा रहे है। अगर लोग जरा सी सावधनी बरते तो हादसों को रोका जा सकता है और अनमोल जीवन को बचाया जा सकता है।

अमूमन देखा गया है कि निजि बसें ज्यादातर दुर्घटनाएं हो रही है। क्योकि इन बसों में अप्रशिक्षित चालकों की लापरवाही के कारण भंयकर हादसे हो रहें हैं। मोबाइल पर प्रतिबन्ध है लेकिन इसकी खुजेआम धज्जियां उडाई जा रही है। प्रशासन भी हादसे के कुछ दिन सक्रियता दिखाता है फिर वही हालात हो जातें है। लोग भी किराये में कुछ रियायत के कारण सरकारी बसों में यात्रा न कर निजि बसों को अहमिहत देतें है और जिदंगियों से खिलवाड करवातें है। पैसों की खतिर बसों के परिचालक बसों में अपेक्षा से अधिक यात्रियों को बिठाते है और खुद मौत को निमंत्रण देते हैं। प्रतिदिन सडकों पर ओवरलोडिग बसें सरपट दौडती रहती है मगर प्रशासन आखें बंद करके सोया रहता है जब हादसा हो जाता है तब इसकी कुभंकरणी नींद टूटती है। प्रशासन के पहुचनें तक लोगों की सासें खत्म हो चुकी होती है।

यदि प्रशासन समय पर कारवाई करता रहे तों इन हादसों पर लगाम लग सकती है। मगर ऐसा नहीं होता। समझ से परे है कि प्रशासन जितना पैसा राहत कार्यों में बांटता है यदि पहले ही सुरक्षा बरती जाए तो लोगों की अनमोल जिन्दगियां बच सकती हैं

विशेषज्ञ रिपोट में सामने आता है कि 80 फीसदी हादसे चालकों की लापरवाही के कारण होतें है जबकि 20 फीसदी तकनीकी खराबी के कारण होतें है। हर हादसे के बाद मैजिस्ट्रेट जांच होती है मगर कुछ समय बाद यह भी ठंडे बस्ते में पड जाती है। ऐसे हत्यारे चालकों को सजा देनी चाहिए ताकि भविष्य में कीमती जाने बच सके।

इन सड़क हादसों का मुख्य कारण सड़कों की खस्ता हालत है। सड़कों पर सही ढंग से हटायरिंग न होने के कारण से सड़कों में गढ़े पड जाते है जिससे दो पहिया या  छोटे वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो जाते है। ऐसे में विभाग तथा टायरिंग करवाने वाले ठेकेदार को भी सजा निर्धारित करनी चाहिए।

सरकार को इन हादसों पर रोक लगानें के लिए सुधारात्मक कदम उठाने होगें मात्र मुआवजा देकर कर्तब्य की इतिश्री नहीं करनी चाहिए। ऐसे चालकों पर हत्या का मामला दर्ज करना चाहिए। परिवहन विभाग को भी ऐसे चालकों के लाईसैसं रद्द करने चाहिए तथा बसों के रूट परमिट भी बंद कर देने चाहिए। सरकार को चाहिए कि क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों को भी निर्देश दिए जाएं कि बस अड्डे पर प्रत्येक बस की रूटिन चैकिगं की जाए तथा बीच में भी छापामारी की जाए ताकि दोषी चालको के विरूद्व मौके पर चालान काटा जाए।

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