हिमाचल प्रदेश का एक चौथाई भाग बेनामीदारों के हाथों बिक चुका है, सरकार अनजान व विभाग जानबूझ कर खामोश

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सुरभि न्यूज़ ब्युरो

कुल्लू, 29

हिमाचल प्रदेश मुजारा और भूमि सुधार अधिनियम -1972″ के चैप्टर -Xl में भूमि हस्तांतरण पर नियंत्रण रखने के लिए धारा 118 का का प्रावधान इस लिए डाला गया है ताकि प्रदेश के किसानों को लैंडलैस होने से बचाया जा सके।

पर्यटन व बागवानी की दृष्टि से प्रदेश में हर कोई दूसरे प्रदेश के लोग हिमाचल प्रदेश में भूमि खरीदना चाहते हैं, जबकि प्रदेश के किसानों के पास पहले ही, पहाड़ी क्षेत्र होने के नाते, कृषि योग्य भूमि कम है। बहुत सारे लोग हिमाचल प्रदेश में भूमि हीन थे, जिन को सरकार ने नौतोड़ भूमि दे कर रोजी रोटी कमाने के काबिल बनाया है।

इसी भूमि को बचाए रखने के लिए प्रदेश सरकार ने धारा 118 का प्रावधान कर के उन लोगों के नाम भूमि हस्तांतरण नियतंत्रित कर दिया जो गैर कृषक हैं। कोई भी गैर कृषक व्यक्ति हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि पर किसी भी रुप में न मालिक बन सकता और न कब्ज़ा कर सकता है।

लेकिन सरकार की ढील और विभाग की लापरवाही से आज हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि का एक चौथाई से ज्यादा भाग गैर कृषक बेनामीदारों के हाथ जा चुका है। क्योंकि ये लोग हिमाचल प्रदेश में सीधे तौर पर ज़मीन ख़रीद नहीं सकते इसलिए इन्होने पहले प्रदेश के किसी स्थाई कृषक को काबू किया। उसे पैसा दिया कि वह उन का मनचाहा स्ट्रक्चर अपनी भूमि पर बना दे। जब स्ट्रक्चर बन जाता है तो बाहर से आया व्यक्ति उस स्ट्रक्चर को एक साल की लीज के आधार पर उस कृषक व्यक्ति से ले लेता है और उस पर कब्ज़ा कर के आस पास की सारी भूमि को बेनामी तौर पर गैर पंजीकृत समझौते के आधार पर ख़रीद लेता है। एक साल की लीज पंजीकृत करना जरुरी नहीं है। अतः उसी स्थाई कृषक भूमि मालिक को बेनामीदार उस संपति का संरक्षक बना कर नौकर रख लेता है और दोनों का धंधा चल पड़ता है। जब कोई पूछे कि यह किस का घर या कारोबार है, तो नाम यहां के स्थाई व्यक्ति का बताया जाता है, क्योंकि रेकॉर्ड में उसी का नाम रहने दिया जाता है।

प्रदेश के लगभग सभी पर्यटन स्थलों, सड़क के किनारे तथा उद्योगिक क्षेत्र के समीप अधिकतर भूमि बाहर के बेनामीदारोंं ने उपरोक्त तरीके से ख़रीद ली है और यहां के कृषक अपनी ही भूमि पर नौकर बनते जा रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि राजस्व विभाग इस घटना से अवगत नहीं है। लेकिन कुछ कर्मचारी और अधिकारी बेनामीदारों और प्रॉपर्टी डीलर्स के हाथों खेल रहे हैं और कुछ मूक दर्शक बने हैं। जिस कारण देवभूमि बेनामी तौर पर बिकती जा रही है।

सरकार को चाहिए कि तुरन्त एक कमीशन का गठन करे जिस में तटस्थ उच्च न्यायलय के रिटायर्ड जस्टिस और राजस्व अधिकारी शामिल हो और पूरे प्रदेश में इस की जॉच की जाए कि कौन सी भूमि किस के कब्जे में हैं। इस प्रकार का कमीशन सरकार ने पहले भी जस्टिस रुप सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में बनाया था, जिस की रिपोर्ट के आधार बहुत सारी संपत्तियां जब्त हुई थी। एक बार फिर इसी प्रकार की कार्यवाही करने का समय आ गया है। साभार – Himalayan Crisis

https://thesurbhinews.blogspot.com/2024/06/blog-post_28.html

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