सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
शिमला, 11 अगस्त
राज्य की सुक्खू सरकार आर्थिक तंगी से जूझ रही है, जिसके चलते सरकार अपना खजाना भरने के लिए कड़े फैसले लिए जा रहे हैं। पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल में चलाई गई विभिन्न योजनाओं को बदलकर आर्थिक स्थिति को सुधारने के नए तरीके निकाले गए हैं। राज्य सरकार ने खजाना भरने के लिए नौ बड़े निर्णय लिए है, इन्हें लागू होने से सरकार को इस वितीय वर्ष में करीब दो हजार करोड़ का राजस्व जुटा सकती है।
सुक्खू सरकार ने निर्णय लिया है कि 125 यूनिट मुफ्त बिजली योजना में बदलाव कर साधन संपन्न लोगों को इसके दायरे से बाहर कर दिया है। इसके अलावा होटल कारोबारियों को कमर्शियल मीटर पर दी गई सब्सिडी को भी खत्म कर दिया है जिससे बिजली बोर्ड सालाना लगभग 900 करोड़ रूपये अर्जित करेगा। दो दिन पहले कैबिनेट ने भाजपा सरकार की गांवों में मुफ्त पानी योजना को भी बंद कर अब गरीबों, एकल महिलाओं, विधवाओं व दिव्यांगों को छोड़कर अन्य लोगों को मुफ्त पेयजल सुविधा नहीं मिलेगी।अब प्रति घरेलु और व्यवसायिक पेयजल क्नेक्शन पर 100 रूपया मासिक के साथ मीटर रीडिंग के आधार पर पानी के बिल आएंगे। इससे सरकार को जल शक्ति विभाग से मिली आय से बिजली बोर्ड की करीब 800 करोड़ रूपये की अदायगी करने में मदद मिलेगी।
सरकार ने पुलिस कर्मचारियों को हिमाचल पथ परिवहन निगम में सफ़र करने पर प्रतिपूरक राशि देने का फैसला किया है। पुलिस कर्मियों के वेतन से मासिक 110 रुपये नहीं कटेंगे और सफ़र करने पर निर्धारित बस किराया अदा करना पड़ेगा जिससे सरकार को आर्थिक मुनाफा होगा।
इसके अलावा प्रदेश सरकार ने राजस्व जुटाने के लिए खनन नियमों में भी संशोधन किया है। सरकार अवैध खनन पर शिकंजा कसने के लिए नई नीति लेकर आई है, इससे सरकार को अतिरिक्त राजस्व मिलने की संभावना है।
सरकार ने नई आबकारी नीति लागू होने से शराब के ठेकों की हर वर्ष नीलामी से सरकार को 600 करोड़ की आय होगी।
शिक्षा विभाग में शून्य पंजीकरण वाले 99 स्कूलों और दो से पांच संख्या विद्यार्थियों वाले 460 स्कूलों को बंद कर भी सरकार अपने राजस्व की बड़ी राशि की बचत कर रही है। सुक्खू कैबिनेट के कर्मचारियों की स्टडी लीव पर जाने पर वेतन का 40 फीसदी देने के फैसले से भी करोड़ों का खर्चा बचेगा।
पूर्व सरकार से चल रही हिमकेयर योजना का दायरा सीमित करने से भी सरकारी कोष की बचत होगी। सरकार ने हिमकेयर योजना से निजी अस्पतालों को बाहर कर दिया है। इससे सरकार को निजी अस्पतालों को भारी भरकम राशि नहीं देनी पड़ेगी। सरकार का तर्क है कि सरकारी अस्पतालों में जो मामूली आप्रेशन 25 हजार रूपये खर्च करके हो जाता है, वो आप्रेशन कुछ निजी अस्पतालों में एक लाख रूपये तक होता है। हिमकेयर योजना में इसका खर्चा सरकार को वहन करना पड़ता था।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा कर्ज की देनदारियां चुकाने और कर्मचारियों के वेतन व पेंशन पर खर्च हो रहा है। करीब 70 फीसदी से ज्यादा बजट इन पर लग रहा है। इस वजह से विकास कार्यों के लिए सरकार के पास बजट कम होना स्वभाविक है। आर्थिक तंगी से जूझ रही सरकार इस हालत से निपटने के लिए कर्ज उठाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। प्रदेश सरकार पर 88 हजार करोड़ रुपये कर्ज का बोझ पहुंच गया है जिससे निपटने के लिए कोई न कोई हल निकालना होगा।