सुरभि न्यूज़
खुशी राम ठाकुर, बरोट
चौहार घाटी तथा छोटाभंगाल घाटी सहित समूचे हिमाचल प्रदेश में सायर का पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक है। यह पर्व नई फसलों के स्वागत और सर्दियों की शुरुआत को भी दर्शता है। इस दौरान लोग भगवान का धन्यवाद करते हैं और अपने अच्छे भविष्य के लिएप्रसन्नता व्यक्त करते हैं इस पर्व के दौरान लोगों खासकर युवाओं द्वारा अखरोट की खेल खेलना, लोगों द्वारा अपने – अपने घरों में स्वादिष्ट पकवानों का बनाना तथा नव विवाहिताओं द्वारा एक माह का काला माह मायके में रहने के बाद दोबारा अपने ससुराल को लौटना सदियों से चली आ रहीं परम्परा आज भी जारी चली हुई है। इन दोनों घाटियों की बात की जाए तो यहां के लोग जीवन की तमाम कठिनाईयों के बावजूद भी अपने परम्पारिक पर्वों को मनाना नहीं भुलते हैं।। दोनों घाटियों में सायर का यह पर्व 15 सितम्बर की शाम से धूमधाम के साथ शुरू हो गया है। 15 सितम्बर की शाम को घाटियों के गांव में लोगों ने अपने – अपने घरों पर कई तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए तथा उनका भरपूर आनंद लिया। सायर पर्व के चलते मंगलवार के दिन को संक्राति के रूप मेंमनाए जाने पर 16 सितम्बर की सुबह लोगों ने सबसे पहले अपने -अपने घरों में अपने ईष्ट देवी – देवताओं की पुजा – अर्चना कर सायर के पर्व की शुरुआत की । इस पर्व में संक्राति के दिन मंगलवार को सुबह से हीछोटे – छोटे बच्चों युवक युवतियों सहित महिलाओं तथा पुरुषों ने अपने स्तर पर टोलियाँ बनाकर सदियों से चली आ रही परम्परा को कायम रखते हुए अपने से बडो़ को द्रुब दी तथा उनके चरण छुए तथा बदले में बडे़ लोगों ने अपने से छोटे लोगों को अखरोट , मिठाई व पैसा देने के साथ – साथ शुभ आशिर्वाद दिया तथा एक दूसरे को सायर पर्व की गले मिलकर बधाइयां भी दी। इस पर्व में द्रुब देने का सिलसिला चार से पांच दिन तक चलता है। इस पर्व के दौरान घाटियों के लगभग सभी दुर्गम गाँवों में मेहमानवाजी भी खूब होती है। महिलाएं तथा पुरूष टोली बनाकर सायर के इस पर्व में गाए जाने वाले गीत गाकर इस पर्व को ओर भी संजीदा बना देते हैं।