कभी न रुकने वाला घुमंतू भेड़ पालकों का सफ़र, आसान नहीं डगर

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सुरभि न्यूज़

खुशी राम ठाकुर, बरोट

प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी मैदानी इलाकों में बढ़ती गर्मी को देखते हुए घुमंतू भेड़ पालकों ने लगभग छः माह का सर्दी का सीजन काटने के बाद पहाड़ों का रूख करना शुरू कर दिया है। इन दिनों घुमंतू भेड़ पालक अपनी भेड़ – बकरियों को लेकर मैदानी इलाकों से लगभग 15 दिनों का पैदल सफर तय कर चौहार घाटी तथा छोटा भंगाल अपने-अपने क्षेत्रों में  पहुँच रहे है। छोटाभंगाल जुधार गाँव के भेड़ पालक प्रेम सिंह कहना है कि वे कालका, पिंजोर, नालागढ़ तथा स्वारघाट में अपने पंजीकृत जंगलों में छः माह सर्दी के लिए भेड़ बकरियों को चराने के लिए ले गए थे मगर गर्मी का मौसम आने पर अपने पशु धन सहित अपने ठंडे व पहाड़ी इलाकों की तरफ बड़ा भंगाल, छोटा भंगाल तथा पहड़ों की चरागाहों में छः माह तक वापिस आ गए हैं। उन्होंने बताया कि आजकल मैदानी इलाकों में गर्मी बढ़ने से उनकी भेड़ – बकरियों के मरने का खतरा बढ़ जाता है इसलिए वे गर्मी से पूर्व ही पहाड़ों की तरफ रूख कर देते हैं तथा पहाड़ों में लगभग छः माह व्यतीत करने की बाद भेड़ पालक सर्दी का मौसम आते ही फिर से वापिस मैदानी इलाको का रुख कर देंगे। उनका कहना है कि दिन–रात सेकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर तय कर भेड़पालकों को कई पडावों पर खतरों का सामना करते हुए अपने पशु धन की सुरक्षा करनी पड़ती है। भारी वर्षा, आंधी, तूफ़ान तथा बर्फवारी पूरे साल भर घर से बाहर रहकर अपना तथा अपने घर परिवार का भरन पोषण करते हैं। कभी न रुकने वाले जिन्दगी इस सफ़र में आने वाली बड़ी सी बड़ी कठिनाइ की परवाह किए बिना प्रसन्नता पूर्वक अपनी भेड़ बकरियों को चराने में ही मस्त रहते हैं। भेड़पालक प्रेम सिंह का कहना है कि उनका जीवन बेहद संघर्ष पूर्ण है मगर वे इस कार्य में अभ्यस्त हो चुके हैं। अब यह व्यवसाय काफी कम हो रहा है। छोटाभंगाल, बड़ा भंगाल तथा चौहार घाटी में वर्षों पूर्व सैंकडों भेड़ पालक थे मगर अब इन क्षेत्रों में नाम मात्र के ही भेड़पालक रह गए हैं। इसका मुख्य कारण युवाओं का शिक्षित हो जाना है। युवा पीढ़ी का इस व्यवसाय से कोई रूचि नहीं है, वहीँ दूसरी ओर पहले की तरह भेड़ पालकों को भेड़ बकरियों को चराने के लिए वन विभाग द्वारा जंगलों की रोकाबंदी कर देने के कारण पर्याप्त जंगल भी नहीं रहे हैं।

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