सुरभि न्यूज़ ब्यूरो
कुल्लू, 11 सितंबर
गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान हिमाचल क्षेत्रीय केंद्र, मौहल में वार्षिक दिवस एवं 11वां हिमालयी लोकप्रिय व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह केंद्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार का एक स्वायत्तशासी संस्थान है।
हिमालयी लोकप्रिय व्याख्यान की मुख्य व्याख्याता प्रोफेसर (डॉ.) देविना वैद्य एसोसिएट निदेशक (आर एंड ई), क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान और प्रशिक्षण स्टेशन डॉ. वाई.एस. परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय बजौरा ने ‘उत्तर-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में सतत बागवानी पद्धतियों के माध्यम से उत्तर-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में आजीविका बढ़ाना” विषय पर अपने विचार व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि नये फल पौधों तथा रूट स्टॉक किस्मों की बागवानी अपना कर किसानों के लिए अधिक आय सृजन का माध्यम बन सकता है। उन्होंने प्राकृतिक कृषि, फल प्रसंस्करण तथा नव प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर आर्थिकी को सुद्रढ़ किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र बजौरा के वैज्ञानिकों का सेब के चिप्स बनाने का प्रयोग सफल हुआ है। आलू की तरह अब बाजार में एप्पल चिप्स भी मिलेंगे। चिप्स के शौकीन लोगों के लिए बाजार में अब सेब के चिप्स भी मिलेंगे जिसकी आलू के चिप्स की तरह ही पैकिंग होगी। यह खाने में जितने स्वाद होंगे उतने सेहत के लिए ठीक रहेंगे।
उन्होेंने बताया कि सेब के चिप्स से बागवानों की आय दोगुना होगी। एक किलो सेब से करीब 750 रुपये की कमाई होगी। आलू के चिप्स की तरह ही इसकी पैकिंग होगी। आधा किलो चिप्स के पैकेट की पैकिंग देखने में आकर्षक होगी। हालांकि, इसका कंसेप्ट स्थानीय भाषा में शकोरी से लिया गया है।
देविना वैद्य ने जानकारी देते हुए बताया कि खुमानी को सूखाकर शकोरी बनायीं जाती है ठीक उसी तरह सेब का प्रयोग कर चिप्स बनाये जाते है। बागवानी अनुसंधान केंद्र की ओर से हिमालय क्षेत्र में बागवानों की आजीविका बढ़ाने के लिए यह प्रयोग किया गया है जो सफल रहा। किसान व बागवान सेब चिप्स तैयार करने के लिए अपना यूनिट लगा सकते हैं जिसके लिए विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ समय-समय पर प्रशिक्षण तथा जानकारी भी देते रहेंगे।
उन्होेने कहा कि उत्तर-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में सतत बागवानी पद्धतियों के माध्यम से आजीविका बढ़ाने के लिए बागवान व किसान फल. फलोें की गुटलियों, साग-सब्जियों, जौ, कौदरा, दालों तथा अन्य हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक उगने वाले पेड़-पौधों व जड़ी-बुटियों से घर में ही छोटा सा प्लांट लगाकर अपना स्वरोजगार चला सकते है। इसके लिए मात्र बागवानों को प्रशिक्षण लेना आवश्यक है। अनुसंधान केंद्र की ओर से बिच्छू बूटी का पास्ता, चटनी का पास्ता, सत्तू का विटा, केक तथा और भी कई उत्पाद तैयार किया जा रहे है। यह उत्पाद खाने में स्वादिष्ट तो है ही साथ में औषधीय गुणों से भी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।
उन्होेने कहा कि हिमालय क्षेत्र में बागवानों के पास भूमि कम है। बागवानी की विभिन्न पद्धतियों के माध्यम से लोगों की आजीविका में वृद्धि की जा सकती है। बागवान उच्च घनत्व वाले सेब के पौधे अपने बगीचों में लगाकर उत्पादन क्षमता उच्च घनत्व वाले पौधों की 9 से बढ़कर 30 हेक्टेयर तक उत्पादन लिया जा सकता है। किसान व बागवान आलू की तरह सेब चिप्स तैयार कर अपनी आय बढ़ा कर अच्छा आर्थिक लाभ अर्जित करने में कामयाबी हासिल कर सकता है ।